Thursday, December 22, 2016

Life

एक ऐसी पोस्ट, जिसने मुझे हिला दिया ।
मैं निरुत्तर सा हो गया, सोचने को विवश !!!

मन द्रवित हुआ इसलिये शेयर कर रहा हूँ । .......
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😑 जिंदगी के सफ़र में चलते चलते हर मुकाम पर यही सवाल परेशान करता रहा....

*कुछ रह तो नहीं गया ?*

😑 3 महीने के बच्चे को दाई के पास रखकर जॉब पर जानेवाली माँ को, दाई ने पूछा... कुछ रह तो नहीं गया ?
पर्स, चाबी सब ले लिया ना ?

अब वो कैसे हाँ कहे ?
पैसे के पीछे भागते भागते... सब कुछ पाने की ख्वाईश में वो जिसके लिये सब कुछ कर रही है ,
*वह ही रह गया है.....*

😑 शादी में दुल्हन को बिदा करते ही शादी का हॉल खाली करते हुए दुल्हन की बुआ ने पूछा..."भैया, कुछ रह तो नहीं गया ना ?
चेक करो ठीक से ।
.. बाप चेक करने गया तो दुल्हन के रूम में कुछ फूल सूखे पड़े थे।
सब कुछ तो पीछे रह गया...
25 साल जो नाम लेकर जिसको आवाज देता था लाड से...
वो नाम पीछे रह गया और उस नाम के आगे गर्व से जो नाम लगाता था, वो नाम भी पीछे रह गया अब ...

"भैया, देखा ?
कुछ पीछे तो नहीं रह गया ?"
बुआ के इस सवाल पर आँखों में आये आंसू छुपाते बाप जुबाँ से तो नहीं बोला....
पर दिल में एक ही आवाज थी...

*सब कुछ तो यही रह गया...*

😑 बडी तमन्नाओ के साथ बेटे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजा था और वह पढ़कर वही सैटल हो गया ,
पौत्र जन्म पर बमुश्किल 3 माह का वीजा मिला था और चलते वक्त बेटे ने प्रश्न किया सब कुछ चैक कर लिया कुछ रह तो नही गया ?
क्या जबाब देते कि
*अब छूटने को बचा ही क्या है ....*

😑 60 वर्ष पूर्ण कर सेवानिवृत्ति की शाम पी ए ने याद दिलाया चेक कर ले सर कुछ रह तो नही गया,
थोडा रूका और सोचा पूरी जिन्दगी तो यही आने- जाने मे बीत गई !
*अब और क्या रह गया होगा ?*

😑 *"कुछ रह तो नहीं गया ?*

" शमशान से लौटते वक्त किसी ने पूछा, नहीं कहते हुए वो आगे बढ़ा...
पर नजर फेर ली,
एक बार पीछे देखने के लिए....पिता की चिता की सुलगती आग देखकर मन भर आया ।
भागते हुए गया , पिता के चेहरे की झलक तलाशने की असफल कोशिश की और वापिस लौट आया ।

दोस्त ने पूछा... कुछ रह गया था क्या?

भरी आँखों से बोला...
*नहीं कुछ भी नहीं रहा अब...*
*और जो कुछ भी रह गया है वह सदा मेरे साथ रहेगा* ।।

😑 एक बार समय निकालकर सोचे , शायद पुराना समय याद आ जाए, आंखें भर आएं और *आज को जी भर जीने का मकसद मिल जाए*।

........मैं अपने सभी दोस्तों से ये ही बोलना चाहता हूँ.......

*यारों क्या पता कब*
*इस जीवन की शाम हो जाये.......*

इससे पहले ऐसा हो सब को गले लगा लो, दो प्यार भरी बातें कर लो.....

*ताकि कुछ छूट न जाये .....*

🌹😊😊🌹



Rajasthani Words translated in Hindi

🐪 आपणों राजस्थान 🐫

♻राजस्थानी शब्द or uske mean

वीरा              भाई
भावज            भाभी
भंवर             बड़ा लड़का
भवरी            बड़ी लड़की
छोरा-छोरी     लड़का-लड़की
डांगरा            पशु
ढोर              भेड़बकरी
बींद              पती/दुल्हा
बींदणी          बहू/दुल्हन
लालजी         देवर
लाडो            बेटी
लाडलो          प्रिये
गीगलो/टाबर    बच्चा
लाडी             सोतन
गेलड़             दूसरे विवाह में स्त्री के साथ जाने वाला बच्चा
बावनो         लम्बाई में छोटा पुरुष
बावनी           लम्बाई में छोटी महिला
घनेड़ो-घनेड़ी  भानजा-भनजी
भूड़ोजी         फूफाजी
धणी-लुगाई    पती-पत्नी
भरतार          पती
कलेवो          नाश्ता
गिवार           अनपढ
बेगा बेगा       जल्दी जल्दी
बेसवार         मसाला
जिनावर        जीव जंतु
सिरख          रजाई
गूदड़ा           छोटा बेड/गद्दा
पथरना         छोटा बेड
हरजस         भजन
पतड़ो          पंचांग
मीती            तीथी
बाखल          लान
तीपड़           तीसरा माला
शाल            सामने का बड़ा कमरा
तखडीओ      तराजू
पसेरी/धडी      5 kg
मण              40 kg
सेर               1kg
धुण              20 kg
बेड़ियो          मसाला रखने का बॉक्स
घडूची          पानी का मटका रखने की वास्तु
ओरा            कोने का कमरा
परिंडा          पानी रखने की जगह
खेळ            पशुओ के पानी पिने का स्थान
कोटड़ी        बोक्स रुम
मालिया        छत पर कमरा
गुम्हारिया      तलघर
कब्जो           ब्लाउज
मूण             मिट्टी का बड़ा घड़ा
मटकी          मिट्टी का घड़ा
ठाटो            कागज गला कर अनाज
                    रखने का बर्तन
गूणीया         चाय/दूध/पानी रखने का
                     छोटा बर्तन  तड़काउ        भोर
उन्द्दालो        गर्मी का मौसम
सियालो        सर्दी का मौसम
चौमासो        बारिश का मौसम
पालर पाणी    पीने का बारिश का
                   पानी
बाकल पाणी   पीने का नल का पानी
दिसा जाना     पायखाना जाना
रमणन           खेलने
तिस (लगना)    प्यास (लगना)
गिट्ना              खाना
ठिकाणा          पता (Address)
किना उडाणा   पतंग उड़ाना
ख्वासजी         नाई
अगूण             पूर्व
आथूंण            पश्चिम
कांजर            बनजारा
झरोखो           खिड़की/विंडोज
बाजोट           लकड़ी की बड़ी चौकी
मांढणो         लिखना
कुलियों       मिट्टी का छोटा बर्तन
मायरो         भात
मुदो           तिलक (विवाह में वर का)
मेल            विवाहिक प्रीतिभोज
मुकलाओ      गोणा/ बालविवाह उपरांत  पहली बार पीहर से पत्नी को घर लाना

बटेऊ           मेहमान
पावना         जवाई
सुतली         रस्सी
ठूंगा              लिफ़ाफ़ा
पूँगा/मुशल        बेवकूफ़
लूण            नमक
कंदों           प्याज
खूंटी          वस्तु/वस्त्र लटकाने का स्थान
कासंन       बर्तन
जापो          बच्चा पैदा होना
ओबरो       अनाज रखने का स्थान
खाट/माचो    बड़ी चारपाई
खटुलो          छोटू चारपाई
घुचरियो     कुत्ते का बच्चा
मुहमांखी     मधु मक्खी
भिलड         घोडा मक्खी
लूकटी         लोमड़ी
गदडो          सियार
खुसड़ा        जूते चप्पल
बरिंडा         बरामदा
झालरों          गले में पहने की माला
गंजी/बंडी        बनियान
झबलो/झूबलो   पवजात बच्चे का वस्त्र
मांडि         कलब (वस्त्रो में दी जाने वाली)
आंक           अक्षर
तागड़ी       स्त्रिओ के कमर पर पहने का आभूषण
झुतरा        बाल
मोड़ों          साधू
पूरियों        जानवरों के भोजन का स्थान
चूंण          आटा
राखूंडो      बर्तन साफ करने का स्थान
सांकली      सरकंडा
होद           पानी रखने की भुमि गत टंकी
उस्तरा        रेजर/दाढ़ी करने का औजार
नीरो             पशुओ का चारा
चोबारा          ऊपर का कमरा
टोळडो          ऊँट का बच्चा
उन्दरो            चूहा
किलकीटारि    गिलहरी
पिडो            बैठने की रस्सी/ऊन की चौकी

♻🐪 राजस्थानी/ मारवाड़ी शब्द कोष में और भी बहुत शब्द है, ये मात्र परिचय है कुछ शब्दों के, आप भी अन्य मारवाड़ी शब्दों की जानकारी ग्रुप में दे...🙏



Thursday, December 15, 2016

Life is priceless

 "सभी ईमानदार डॉक्टर्स से क्षमा सहित प्रार्थना...!"
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आपके पिता जी को "हार्ट अटैक" हो गया...

डॉक्टर कहता है-  Streptokinase इंजेक्शन ले के आओ...
9000 रु का...
इंजेक्शन की असली कीमत 700 - 900 रु के बीच है...
पर उसपे MRP 9000 का है।

आप क्या करेंगे??
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आपके बेटे को टाइफाइड हो गया...
डॉक्टर ने लिख दिया -
कुल 14 Monocef लगेंगे।

होलसेल दाम 25 रु है.

अस्पताल का केमिस्ट आपको 53 रु में देता है...

आप क्या करेंगे??
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आपकी माँ की किडनी फेल हो गयी है...

हर तीसरे दिन Dialysis होता है...
Dialysis के बाद एक इंजेक्शन लगता है -
MRP शायद 1800 रु है।

आप सोचते हैं की बाज़ार से होलसेल मार्किट से ले लेता हूँ।

पूरा हिन्दुस्तान आप खोज मारते हैं, कही नहीं मिलता... क्यों?

कम्पनी सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर को सप्लाई देती है।

इंजेक्शन की असली कीमत 500 है पर डॉक्टर अपने अस्पताल में MRP पे यानि 1800 में देता है...

आप क्या करेंगे ??
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आपके बेटे को इन्फेक्शन हो गया है...
डॉक्टर ने जो Antibiotic लिखी,  वो 540 रु का एक पत्ता है.
वही salt किसी दूसरी कम्पनी का 150 का है और जेनेरिक 45 रु का...
पर केमिस्ट आपको मना कर देता है...
नहीं जेनेरिक हम रखते ही नहीं, दूसरी कम्पनी की देंगे नहीं...
वही देंगे,  जो डॉक्टर साहब ने लिखी है... यानी 540 वाली?
आप क्या करेंगे??
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बाज़ार में Ultrasound Test 750 रु में होता है...

चैरिटेबल डिस्पेंसरी 240 रु में करती है।

750 में डॉक्टर का कमीशन 300 रु है।

MRI में डॉक्टर का कमीशन
Rs. 2000 से 3000 के बीच है।

डॉक्टर और अस्पतालों की ये लूट, ये नंगा नाच बेधड़क बेखौफ्फ़ देश में चल रहा है।

Pharmaceutical कम्पनियों की lobby इतनी मज़बूत है की उसने देश को सीधे सीधे बंधक बना रखा है।

डॉक्टर्स और दवा कम्पनियां मिली हुई हैं।

दोनों मिल के सरकार को ब्लैकमेल करते हैं...

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सबसे बडा यक्ष प्रश्न...

मीडिया दिन रात क्या दिखाता है ?

गड्ढे में गिरा प्रिंस...
बिना ड्राईवर की कार,
राखी सावंत, Bigboss
सास बहू और साज़िश,
सावधान, क्राइम रिपोर्ट,
Cricketer की Girl friend,

ये सब दिखाता है,

किंतु...
Doctors, Hospitals
और Pharmaceutical कम्पनियों की ये खुली लूट क्यों नहीं दिखाता?
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मीडिया नहीं दिखाएगा,
तो कौन दिखाएगा ?

मेडिकल Lobby की दादागिरी कैसे रुकेगी ?

इस Lobby ने सरकार को लाचार कर रखा है।

media क्यों चुप है ?

200/- रु मांगने पर ऑटो वाले को तो आप कालर पकड़ के मारेंगे चार झापड़..!

डॉक्टर साहब का क्या करेंगे??
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यदि आपको ये सत्य लगता है तो करदो फ़ॉरवर्ड सबको।

जागरूकता लाइए और दूसरों को भी जागरूक बनाने में अपना सहयोग दीजिये।
The Makers of Ideal Society
        एक सोच बदलाव की. . . . .

 .आप तीन लोगो भेज दो । और ओ तीन लोग अगले तीन लोगो को जरूर भेज देगे।।।।।।।।                      


 ‬:👌::  एक   खूबसूरत   सोच  ::👌:

                     अगर कोई पूछे कि जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया ? .... .... तो बेशक कहना, जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी और जो भी पाया वो प्रभू की मेहेरबानी थी। क्या खुबसूरत रिश्ता है मेरे और मेरे भगवान के बीच में, ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वो देता नहीं...✍”॥
                     

       ▁▂▄▅▆▇██▇▆▅▄▂▁

 ☄जीवन के तीन मंत्र☄

☄ आनंद में  -  वचन मत दीजिये

☄ क्रोध में  -  उत्तर मत दीजिये

☄ दुःख में  -  निर्णय मत लीजिये

 💐💎    जीवन मंत्र      💎💐

१) धीरे बोलिये      👉  शांति मिलेगी
२) अहम छोड़िये   👉  बड़े बनेंगे
३) भक्ति कीजिए   👉  मुक्ति मिलेगी
४) विचार कीजिए  👉  ज्ञान मिलेगा
५) सेवा कीजिए    👉  शक्ति मिलेगी
६) सहन कीजिए   👉  देवत्व मिलेगा
७) संतोषी बनिए   👉  सुख मिलेगा

                    "इतना छोटा कद रखिए कि सभी आपके साथ बैठ सकें। और इतना बड़ा मन रखिए कि जब आप खड़े हो जाऐं, तो कोई बैठा न रह सके।"

              👌 शानदार बात👌

                     झाड़ू जब तक एक सूत्र में बँधी होती है, तब तक वह "कचरा" साफ करती है।

                      लेकिन वही झाड़ू जब बिखर जाती है, तो खुद कचरा हो जाती है।

                     इस लिये, हमेशा संगठन से बंधे रहें , बिखर कर कचरा न बनें।

acha lage to share jarur kare


A Son's Story - Inspirational Story

एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर
गया।
खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया।
रेस्टॉरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे
लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।
खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके
कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की,चश्मा
पहनाया और फिर बाहर लाया।
सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के
साथ
बाहर जाने लगा।
तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या
तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर
नहीं जा रहा। "
वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ
छोड़ कर जा रहे हो,
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद
(आशा)। "
आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना
पसंद नहीँ करते
और कहते हैं क्या करोगे आप से चला तो जाता
नहीं ठीक से खाया भी नहीं जाता आप तो घर पर ही रहो वही अच्छा
होगा.
क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी
गोद मे उठा कर ले जाया
करते थे,
आप जब ठीक से खा नही
पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर
जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी
फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते हैं???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...
क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होगें।

शेयर जरूर करे।जिससे लोग सबक   ले।
__ #Add_Me_FRiendss


Thursday, December 8, 2016

Morning Message

*🐾☀🐾आज का विचार􎰽🨀🐾☀🐾*
*::~ सुबह-सुबह की नमस्ते ~::*

         जिंदगी में पीछे देखोगे तो *"अनुभव"* मिलेगा...,
         जिंदगी में आगे देखोगे तो *"आशा"* मिलेगी...,
         दांए-बांए देखोगे तो *"सत्य"* मिलेगा...,
         लेकिन अगर भीतर देखोगे तो *"परमात्मा"* मिलेगा...,
         *"आत्मविश्वास"* मिलेगा...।

*हमेशा खुश रहिए ताकि दूसरे भी आपसे खुश हो जाएँ।*
                    *"🐚☀🐚"*
                *"🐾स्नेह वंदन🐾"*
                 *"🙏🏻सुप्रभात🙏🏻"*
          *"🙏🏻स्वस्थ रहें मस्त रहें🙏🏻"*



🌺✨🌺✨🌺✨🌺✨🌺✨🌺✨

अगर आपको कोई अच्छा लगता है
           तो अच्छा वो नहीं,
         बल्कि अच्छे आप हो.....!!
                    क्योंकि
       उसमें अच्छाई देखने वाली
          "नजर" आपके पास है...
     🌺Good morning🌺✨    have a beautiful day✨



Wednesday, December 7, 2016

Morning Message

*" वाणी "* को *" वीणा "* बनाये,
         *" वाणी "* को *" बाण "* न बनाये !
क्योकि *" वीणा "* बनेगी तो,
         जीवन में *" संगीत "* होगा... !
और *" बाण "* बनेगी तो,
         जीवन में *" महाभारत "* होगा !!

*कामयाबी कभी बड़ी नहीं होती,*
         पाने वाले हमेशा बड़े होते है !
*दरार कभी बड़ी नहीं होती,*
         भरने वाले हमेशा बड़े होते है !
*सम्बध  कभी बड़े नहीं होते,*
         निभाने वाले हमेशा बड़े होते है !...
🌺💐😊🙏


💠☘💠☘💠☘💠☘💠☘

🌑💕🐾🌑💕🐾🌑💕🐾🌑
          *✍वक्त से लड़कर*
            *जो नसीब बदल दे !!*
            *इन्सान वही जो*
      *अपनी तक़दीर बदल दे !!*

            *कल क्या होगा*
            *कभी मत सोचो !!*
        *क्या पता कल वक्त खुद*
       *अपनी तस्वीर बदल दे !!*

🌑💕🐾🌑💕🐾🌑💕🐾🌑

_*```🌹🌻GOOD MORNING  🌻🌹```*_
💠☘💠☘💠☘💠☘💠☘


Stay connected with your family

🍂‼🍃🍃‼🍃🍃‼🍂

   *पत्थर तब तक सलामत है*
  *जब तक वो पर्वत से जुड़ा है.*
   *पत्ता तब तक सलामत है*
 *जब तक वो पेड़ से जुड़ा है.*
  *इंसान तब तक सलामत है*
*जब तक वो परिवार  से जुड़ा है.*
               *क्योंकि,*
     *परिवार से अलग होकर*
    *आज़ादी तो मिल जाती है*
                *लेकिन*
       *संस्कार चले जाते हैं.*

         🙏🙏सुप्रभात🙏🙏
🍂‼🍃🍃‼🍃🍃‼🍂


युवा जागृति सन्देश - विचार शक्ति

*🚁..💪🏼युवा जागृति सन्देश।*

  *☀विचार शक्ति☀*

☄एक विचार मित्रता बना देता है, एक विचार शत्रुता व कलह पैदा कर देता है।

☄एक विचार साधक को गिराकर संसारी बना देता है, एक विचार संसारी को संयमी बनाकर भगवान बना देता है।

☄सिद्धार्थ के एक सुविचार ने उनको संयमी बनाकर भगवान बना दिया।

☄इसलिए सुविचार की बलिहारी है।सुविचार आये तो उसे पकड़ रखना चाहिए।

☄एक नीच विचार करोड़ों आदमियों को परेशान कर देता है।

☄रावण के एक छोटे विचार ने देखो, पूरी लंका को परेशान कर दिया, बन्दरों को परेशान कर दिया।ऐसे ही सिकंदर के, हिटलर के एक नीच विचार ने कई लोगों की बलि ले ली, तबाही मचा दी।

*-पूज्य बापूजी🌹*

*💪🏼युवा वीर है दनदनाता चला जा..🏃🏻🏃🏻*


अहंकार की कथा - a lesson from history

अहंकार की कथा .....!

श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी
सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे, निकट
ही गरुड़ और
सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे। तीनों के चेहरे पर
दिव्य
तेज
झलक रहा था।
बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने
श्रीकृष्ण से
पूछा कि हे प्रभु, आपने त्रेता युग में राम के रूप
में
अवतार
लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं।
क्या वे मुझसे
भी ज्यादा सुंदर थीं?

द्वारकाधीश समझ
गए
कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान
हो गया है।
तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया
में मुझसे
भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है।
इधर
सुदर्शन
चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे
कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में
आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या
संसार में मुझसे
भी शक्तिशाली कोई है?
भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे
कि उनके इन
तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और
इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है।
ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा कि हे
गरुड़! तुम
हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान
राम,
माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर
रहे हैं। गरुड़
भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने
चले गए।
इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि
देवी आप
सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं
द्वारकाधीश
ने राम का रूप धारण कर लिया। मधुसूदन ने
सुदर्शन
चक्र
को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश
द्वार
पर
पहरा दो। और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के
बिना महल में कोई प्रवेश न करे।
भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश
द्वार
पर
तैनात हो गए। गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर
कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता
सीता के
साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए
प्रतीक्षा कर
रहे हैं। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी
पीठ पर
बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा। हनुमान
ने
विनयपूर्वक गरुड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता
हूं।
गरुड़ ने
सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब
पहुंचेगा। खैर मैं
भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरुड़
शीघ्रता से
द्वारका की ओर उड़े। पर यह क्या, महल में
पहुंचकर
गरुड़
देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में
प्रभु
के
सामने बैठे हैं। गरुड़ का सिर लज्जा से झुक
गया।
तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवन
पुत्र तुम
बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?
क्या तुम्हें
किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?
हनुमान ने हाथ
जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन
चक्र
को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया।
हनुमान ने
कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने
रोका था, इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे
मिलने आ
गया। मुझे क्षमा करें। भगवान मंद-मंद
मुस्कुराने लगे।
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न
किया हे
प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर
किस
दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह
आपके साथ
सिंहासन पर विराजमान है।
अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने
की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार
था,
जो पलभर में चूर हो गया था। रानी
सत्यभामा,
सुदर्शन चक्र व गरुड़ तीनों का गर्व चूर-चूर
हो गया था।
वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों
की आंख से
आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए।

अद्भुत लीला है प्रभु की।

हे मेरे परम-स्नेही मित्रो ..जब इन तीनो का अहंकार चूर चूर हो गया तो इन तीनो के सामने हम अपने आपको किस जगह पाते है ?

विचार करना ...!


ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ?

*🌞 ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ? 🌞*

रात्रि के अंतिम प्रहर के तत्काबाद का समय को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।

ब्रह्म  मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।*

*“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।*
(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।)

सिख मत में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--*"अमृत वेला"* ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।

*ब्रह्म मुहूर्त* में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।

*पौराणिक महत्व* -- वाल्मीकि रामायण  के अनुसार श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद मंत्रो का पाठ करते माता सीता को सुना
शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है--
*वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।*
*ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥*
अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।

*ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति :--*
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।

*इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि*

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है

*ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।*
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ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।

*🌑वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।*

प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1
अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।
यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35
अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की उपासना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।
उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।
अथर्ववेद- 7/16/२
अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।

🔷व्यावहारिक महत्व - व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है!

*🌑जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या*🌑:--

🔶प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।

🔶प्रातः 5 से 7 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान का लेना चाहिए । सुबह 7 के बाद जो मल-त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।

🔶प्रातः 7 से 9 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये।

🔶प्रातः 11 से 1 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है।

🔶दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसी लिए भोजन वर्जित है । इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है ।

🔶दोपहर 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।

🔶दोपहर 3 से 5 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।

🔶शाम 5 से 7 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है । इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए । शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करे। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते है । देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।

🔶रात्री 7 से 9 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टी हुई है।

🔶रात्री 9 से 11 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है । यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।

🔶रात्री 11 से 1 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएं बनती है ।

🔶रात्री 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।

🔷नोट :-ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखे, जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबुफे डिनरʹ से बचना चाहिए।
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।

🔶शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।

🔶आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देगी।💖💥
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Mahabharat Karna history - a lesson of history

Mahabharat Karna history in hindi महाभारत में एक सबसे रोमांचित और सबको अपनी ओर मोहित करने वाला किरदार था जिसका नाम था कर्ण. सूर्य पुत्र कर्ण एक महान योद्धा और ज्ञानी पुरुष थे. आज से लगभग दो दशक पहले महाभारत लिखी गई थी, तब से अब तक जब भी उसकी बात होती है तो ज्यादातर लोग पांडव व कौरवों में से अर्जुन, दुर्योधन, दुर्शासन की बात करते है. बहुत कम लोग कर्ण के बारे में बात करते है और कम लोग ही इनके जीवन के बारे में जानते है. आज हम आपको कर्ण के जीवन से जुडी रोचक बातें करीब से बतायेंगें.

महाभारत के कर्ण से जुड़ी रोचक बातें

Mahabharat Karna History inhindi

महाभारत में जितना मुख्य किरदार अर्जुन का था, उतना ही कर्ण का भी था. कर्ण को श्राप के चलते अपने पुरे जीवन काल में कष्ट उठाने पड़े और उन्हें वो हक वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे. कर्ण एक क्षत्रीय होते हुए भी पुरे जीवन सूद्र के रूप में बिताया और युधिस्थर, दुर्योधन से बड़े होने के बावजूद कर्ण को उनके सामने झुकना पड़ा.

महर्षि दुर्वासा द्वारा दिए वरदान की कथा और कर्ण का जन्म :

एक बार कुंती नामक राज्य में महर्षि दुर्वासा पधारे. महर्षि दुर्वासा बहुत ही क्रोधी प्रवृत्ति के ऋषि थे, कोई भी भूल होने पर वे दंड के रूप में श्राप दे देते थे, अतः उस समय उनसे सभी लोग भयभीत रहते थे.

कुंती राज्य की राजकुमारी का नाम था – कुंती. राजकुमारी कुंती बहुत ही शांत, सरल और विनम्र स्वभाव की थी. अपने राज्य में महर्षि दुर्वासा की आगमन का समाचार सुनकर राजकुमारी कुंती ने उनके स्वागत, सत्कार और सेवा का निश्चय किया और मन, वचन और कर्म से इस कार्य में जुट गयी. महर्षि दुर्वासा ने लम्बा समय कुंती राज्य में व्यतीत किया और जितने समय तक वे वहाँ रहें, राजकुमारी कुंती उनकी सेवा में हमेशा प्रस्तुत रही. उनकी सेवा भावना से महर्षि दुर्वासा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने राजकुमारी कुंती को “ वरदान स्वरुप एक मंत्र दिया और कहा कि वे जिस भी देवता का नाम लेकर इस मंत्र का जाप करेंगी, उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी और उस पुत्र में उस देवता के ही गुण विद्यमान होंगे.” इसके बाद महर्षि दुर्वासा कुंती राज्य से प्रस्थान कर गये.

पुराणों के अनुसार महर्षि दुर्वासा के पास भविष्य देखने की शक्ति थी और वे जान गये थे कि राजकुमारी कुंती का विवाह कुरु कुल के महाराज पांडू से होगा और एक ऋषि से मिले श्राप के कारण वे कभी पिता नहीं बन पाएँगे. इसी भविष्य की घटना को ध्यान में रखते हुए महर्षि दुर्वासा ने राजकुमारी कुंती को इस प्रकार मंत्रोच्चारण द्वारा पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया ताकि वे कुरु कुल को उसका उत्तराधिकारी दे सके.

जिस समय महर्षि दुर्वासा ने राजकुमारी कुंती को यह वरदान दिया था, उस समय उनकी आयु अधिक नहीं थी और इस कारण वे इतनी समझदार भी नहीं थी. अतः उन्होंने महर्षि दुर्वासा द्वारा प्राप्त वरदान का परिक्षण करना चाहा और उन्होंने भगवान सूर्य का नाम लेकर मंत्र का उच्चारण प्रारंभ किया और कुछ ही क्षणों में एक बालक राजकुमारी कुंती की गोद में प्रकट हो गया और जैसा कि ऋषिवर ने वरदान दिया था कि इस प्रकार जन्म लेने वाले पुत्र में उस देवता के गुण होंगे, यह बालक भी भगवान सूर्य के समान तेज लेकर उत्पन्न हुआ था. इस प्रकार बालक कर्ण का जन्म हुआ. इस प्रकार कर्ण की माता कुंती और पिता भगवान सूर्य थे.

राजकुमारी कुंती द्वारा बालक कर्ण को त्याग देने का निर्णय:

जिस समय कर्ण का जन्म हुआ, उस समय राजकुमारी कुंती अविवाहित थी और बिना विवाह के पुत्र होने के कारण वे राज्य में अपनी, अपने पिता की, अपने सम्पूर्ण परिवार और राज्य की प्रतिष्ठा और सम्मान के प्रति चिंतित हो गयी और भगवान सूर्य से इस प्रकार उत्पन्न हुए पुत्र को वापस लेने की प्रार्थना करने लगी. साथ ही वे अपने कौमार्य [ Virginity ] के प्रति भी चिंतित थी. तब भगवान सूर्य ने उन्हें आश्वस्त किया कि इस प्रकार पुत्र के जन्म से उनके कौमार्य को कोई क्षति नहीं पहुँचेगी क्योंकि भगवान सूर्य इस पुत्र के जैविक पिता [ Biological Father ] नहीं हैं. परन्तु वे इस पुत्र को वापस नहीं ले सकते थे क्योंकि वे महर्षि दुर्वासा द्वारा दिए गये वरदान से बंधे हुए थे और वरदान को पूरा करने हेतु विवश भी थे. इस स्थिति में राजकुमारी कुंती ने लोक – लाज के कारण पुत्र का त्याग करने का निर्णय लिया. परन्तु वे अपने पुत्र प्रेम के कारण उसकी सुरक्षा हेतु चिंतित थी. इस कारण उन्होंने भगवान सूर्य से अपने पुत्र की रक्षा करने की प्रार्थना की, तब भगवान सूर्य ने अपने पुत्र की सुरक्षा के लिए उसके शरीर परअभेद्य कवच और कानों में कुंडल [ Earrings ] प्रदान किये, जो इस बालक के शरीर का ही हिस्सा थे. इन्ही कुण्डलो के कारण इस बालक का नाम कर्ण रखा गया.

सारथी अधिरथ द्वार कर्ण को पुत्र रूप में पालना :

जब राजकुमारी कुंती अपने पुत्र कर्ण की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो गयी, तब उन्होंने बड़े ही दुःख के साथ इस प्रकार जन्मे अपने नवजात बालक को एक टोकरी में रखकर गंगा नदी में बहा दिया. इस प्रकार बहते – बहते यह हस्तिनापुर नगरी पहुँच गया और इस प्रकार अधिरथ नामक एक व्यक्ति को नदी में टोकरी में बहकर आता हुआ बालक दिखाई दिया और इस व्यक्ति ने इस बालक को अपने पुत्र के रूप में अपनाया. यह व्यक्ति हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र का सारथी [ रथ – चालक / Charioteer ] था. अधिरथ और उनकी पत्नि ‘राधा’ ने बड़े ही स्नेह के साथ इस बालक को अपनाया और अपने पुत्र के रूप में इस बालक का पालन पोषण किया और इस प्रकार बालक कर्ण को माता – पिता प्राप्त हुए और जन्म लेते ही उन्होंने इस संघर्ष का सामना किया.

कर्ण का संक्षिप्त परिचय :नामकर्ण / वासुसेनमाता – पिताजिन्होंने जन्म दिया – राजकुमारी कुंती और भगवान सूर्य

जिन्होंने पालन पोषण किया – सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा

गुरुभगवन श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान परशुरामराज्यअंग देशपत्निवृशालीसंतानसुदामा, वृशसेन, चित्रसेन, सत्यसेन, सुषेन, शत्रुंजय, द्विपाता, बाणसेन, प्रसेन और वृषकेतु.

जिन्होंने पालन पोषण किया – सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा

कर्ण अंग देश के राजा थे, इस कारण उन्हें अंगराज के नाम से भी जाना जाता हैं. आज जिसे भागलपुर और मुंगर कहा जाता हैं, महाभारत काल में वह अंग राज्य हुआ करता था. कर्ण बहुत ही महान योध्दा थे, जिसकी वीरता का गुणगान स्वयं भगवान श्री कृष्ण और पितामह भीष्म ने कई बार किया. कर्ण ही इकलौते ऐसे योध्दा थे, जिनमे परम वीर पांडू पुत्र अर्जुन को हराने का पराक्रम था. अगर ये कहा जाये कि वे अर्जुन से भी बढकर योध्दा थे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि इतनी शक्ति होते हुए भी अर्जुन को कर्ण का वध करते समय अनीति का प्रयोग करना पड़ा. अर्जुन ने कर्ण का वध उस समय किया, जब कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस गया था और वे उसे निकाल रहे थे और उस समय निहत्थे थे.

कर्ण का आरंभिक जीवन –

कर्ण धनुर विद्या का ज्ञान पाना चाहते थे जिसके लिए वे द्रोणाचार्य के पास गए लेकिन गुरु द्रोणाचार्य सिर्फ क्षत्रीय राजकुमारों को इसकी शिक्षा देते थे उन्होंने कर्ण को सूद्र पुत्र कहके बेइज्जत करके मना कर दिया, जिसके बाद कर्ण ने निश्चय किया कि वो इनसे भी अधिक ज्ञानी बनेगा जिसके लिए वो उनके ही गुरु शिव भक्त परशुरामजी के पास गए. परशुराम सिर्फ ब्राह्मण को शिक्षा देते थे, कही परशुराम मना ना कर दे ये सोच कर कर्ण ने उनको झूट बोल दिया कि वो ब्राह्मण है. परशुराम ने उन्हें बहुत गहन शिक्षा दी जिसके बाद वे कर्ण को अपने बराबर का ज्ञानी धनोदर बोलने लगे. एक दिन जब कर्ण की शिक्षा समाप्त होने वाली थी तब उसने अपने गुरु से आग्रह किया कि वो उसकी गोद में लेट कर आराम कर लें, तभी एक बिच्छु आकर कर्ण को पैर में काटने लगा, कर्ण हिला नहीं क्यूनी उसे लगा अगर वो हिलेगा तो उसके गुरु उठ जायेंगे. जब परशुराम उठे तब उन्होंने देखा कि कर्ण का पैर खून से लथपथ था, तब उन्होंने उसे बोला कि इतना दर्द एक ब्राह्मण कभी नहीं सह सकता तुम निश्चय ही एक क्षत्रीय हो. कर्ण अपनी सच्चाई खुद भी नहीं जानता था, लेकिन परशुराम उससे बहुत नाराज हुए और गुस्से में आकर उन्होंने श्राप दे दिया कि जब भी उसे उनके द्वारा दिए गए ज्ञान की सबसे ज्यादा जरुरत होगी तभी वो सब भूल जायेगा.

कर्ण-दुर्योधन की दोस्ती –

दुर्योधन 100 कौरव में सबसे बड़ा था. दुर्योधन अपने कजिन भाई पाडवों से बहुत द्वेष रखता था, वह नहीं चाहता था कि हस्तिनापुर की राजगद्दी उससे भी बड़े पांडव पुत्र युधिस्थर को मिले. कर्ण दुर्योधन की मुलाकात द्रोणाचार्य द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हुई थी. यहाँ सभी धनुर्वि अपने गुण दिखाते है, इन सब में अर्जुन श्रेष्ट रहता है, लेकिन कर्ण उसे सामने से ललकारता था तब वे उसका नाम जाती पूछते है क्यूंकि राजकुमार सिर्फ क्षत्रीय से ही लड़ते थे. कर्ण जब बोलता है कि वो सूद्र पुत्र है तब सभी उसका मजाक उड़ाते है भीम उसे बहुत बेइज्जत करता है. ये बात कर्ण को अंदर तक आहात करती है, और यही वजह बनती है कर्ण की अर्जुन के खिलाफ खड़े होने की. दुर्योधन ये देख मौके का फायदा उठाता है उसे पता है कि अर्जुन के आगे कोई भी नहीं खड़ा हो सकता है तब वो कर्ण को आगे रहकर मौका देता है वो उसे अंग देश का राजा बना देता है जिससे वो अर्जुन के साथ युद्ध करने के योग्य हो जाता है. कर्ण इस बात के लिए दुर्योधन का धन्यवाद करता है और उससे पूछता है कि वो इस बात का ऋण चुकाने के लिए क्या कर सकता है, तब दुर्योधन उसे बोलता है कि वो जीवन भर उसकी दोस्ती चाहता है. इसके बाद से दोनों पक्के दोस्त हो जाते है.

दुर्योधन कर्ण पर बहुत विश्वास करते थे, उन्हें उन पर खुद से भी ज्यादा भरोसा था. इनकी दोस्ती होने के बाद दोनों अधिकतर समय साथ में ही गुजारते थे. एक बार दोनों शाम के समय चोपड़ का गेम खेल रहे थे, तभी दुर्योधन वहां से चले गए तब उनकी पत्नी भानुमती वहां से गुजरी और अपने पति की जगह वो खेलने बैठ गई. किसकी बारी है इस बात को लेकर दोनों के बीच झगड़ा होने लगा, तब कर्ण भानुमती से पांसा छीनने लगता है, इसी बीच भानुमती की माला टूट जाती है और मोती सब जगह फ़ैल जाते है और उसके कपड़े भी अव्यवस्थित हो जाते है. तभी दुर्योधन वहां आ जाता है और दोनों को इस हाल में देखता है. दुर्योधन कर्ण से पूछता है कि किस बात पर तुम लोग लड़ रहे हो, जब उसे कारण पता चलता है तब वह बहुत हंसता है. इसके बाद भानुमती दुर्योधन से पूछती है कि आपने मुझपर शक क्यूँ नहीं किया, तब दुर्योधन बोलता है कि रिश्ते में शक की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, अगर शक आ जाये तो रिश्ता ख़त्म होने लगता है. मुझे कर्ण पर पूरा विश्वास है वो कभी मेरे विश्वास को नहीं तोड़ेगा.

कर्ण के अन्य नाम :

महाभारत काल में वे कर्ण नाम से प्रसिद्ध हुए, जिसका अर्थ हैं – अपनी स्वयं की देह अथवा कवच को भेदने वाला.

उनके अन्य नाम भी थे, जो अग्र – लिखित हैं -:

क्रमांककर्ण के अन्य नामनाम रखने का कारण और उनका अर्थ1.राधेयराधा का पुत्र होने के कारण.2.वैकर्तानाजिसने भगवान इन्द्र को अपने अभेद्य कवच और कुंडल दान दे दिए.

जो हिन्दुओं के देवता भगवान सूर्य से सम्बंधित हो.

3.रश्मिरथीजो प्रकाश के रथ पर सवार हो.4.वासुसेनकर्ण का जन्म नाम.

जो धन के साथ जन्मा हो [ सोने के कवच और कुण्डलों के कारण. ]

5.सूर्यपुत्रभगवान सूर्य का पुत्र.6.परशुराम शिष्यभगवान परशुराम का शिष्य होने के कारण.7.अंगराजअंग राज्य का राजा होने के कारण.8.विजयधारीविजय धनुष धारण करने वाला.9.अधिरथीअधिरथ का पुत्र होने के कारण.10.दानवीरजो व्यक्ति दान देने का स्वभाव रखता हो.11.दानशूरजो व्यक्ति सच्चे योध्दा की तरह लड़ें.12.वृषाजो सत्य बोलता हो, तपस्या में लीन, प्रतिज्ञा का पालन करने वाला और शत्रुओं पर भी दया करने वाला व्यक्ति.13.सौतासूत का पुत्र होने के कारण अथवा सारथी / सूत जाति से सम्बंधित होने के कारण.14.सूतपुत्रसूत का पुत्र होने के कारण अथवा सारथी / सूत जाति से सम्बंधित होने के कारण.15.कौन्तेयकुंती का पुत्र होने के कारण.

जो हिन्दुओं के देवता भगवान सूर्य से सम्बंधित हो.

जो धन के साथ जन्मा हो [ सोने के कवच और कुण्डलों के कारण. ]

इस प्रकार कर्ण के विभिन्न कारणों से विभिन्न नाम थे.

कर्ण को दानवीर क्यों कहा जाता है ?

हिन्दू धर्म ग्रंथों में अपने दानी स्वभाव के कारण 3 लोगों ने बहुत ख्याति प्राप्त की. वे हैं -: राक्षसों के राजा बलि, राजा हरिश्चंद्र और कर्ण. इनका नाम सदैव दूसरों की मदद करने में, साहस में, अपनी दानवीरता में, निस्वार्थ भाव के लिए और अपने पराक्रम के लिए लिया जाता हैं.

अर्जुन एक बार कृष्ण से पूछते है कि आप क्यूँ युधिस्थर को धर्मराज और कर्ण को दानवीर कहते हो, तब इस बात का जबाब देने के लिए कृष्ण अर्जुन के साथ ब्राह्मण रूप में दोनों के पास जाते है. पहले वे युधिस्थर के पास जाते है और जलाने के लिए सुखी चन्दन की लकड़ी मांगते है. उस समय बहुत बारिश हो रही होती है, युधिस्थर अपने आस पास सब जगह बहुत ढूढ़ता है लेकिन उसे कोई भी सुखी लकड़ी नहीं मिलती जिसके बाद वो उन दोनों से माफ़ी मांगकर उन्हें खाली हाथ विदा करता है.इसके बाद वे कर्ण के पास जाते है, और वही चीज मांगते है. कर्ण भी सभी जगह सुखी चन्दन की लकड़ी तलाशता है लेकिन उसे भी नहीं मिलती. कर्ण अपने घर से ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहता था तब वो अपने धनुष ने चन्दन की लकड़ी का बना दरवाजा तोड़ कर उन्हें दे देता है. इससे पता चलता है कि कर्ण बहुत बड़े दानवीर थे.

महाबली कर्ण ने वैसे तो अनेक दान किये , परन्तु उनके जीवन के दो महत्वपूर्ण दानों का वर्णन निम्नानुसार हैं -:

भगवान इन्द्र को दिया गया दान : पुराणों के अनुसार कर्ण प्रतिदिन अपने पास आए याचकों को मनचाहा दान देते थे, ये उनकी दिनचर्या में शामिल था. महाभारत के युद्ध के समय जब वे अपने स्नान और पूजा के पश्चात् याचको को रोज की तरह दान देने लगे, तब उन याचकों में भगवान इन्द्र अपना रूप बदलकर एक साधु के रूप में सम्मिलित हो गये और उन्होंने दान स्वरुप कर्ण के कवच और कुंडल मांग लिए और कर्ण ने बिना अपने प्राणों की चिंता किये अपने कवच और कुंडल को अपने शरीर से अलग कर उन्हें दान स्वरुप दे दिया. इस प्रसंग में महत्वपूर्ण बात यह थी कि महाबली कर्ण को यह बात पहले ही उनके पिता भगवान सूर्य से पता चल चुकी थी कि भगवान इंद्र अपने पुत्र अर्जुन के प्राणों के मोह वश उनसे इस प्रकार छल पूर्वक कवच और कुंडल का दान मांगने आएंगे और भगवान सूर्य ने अपने पुत्र कर्ण को अपने पुत्र मोह के कारण उन्हें ये दान देने से मना किया. परन्तु कर्ण ने इस प्रकार याचक को खाली हाथ लौटाने से मना कर दिया और अपने कवच और कुंडल सब कुछ जानते हुए भी ख़ुशी से दान कर दिए.अपनी माता कुंती को दान : कर्ण ने अपनी और पांडु पुत्रों की माता महारानी कुंती को भी अभय दान दिया था. अर्थात् उन्होंने महारानी कुंती को दान स्वरुप ये वचन दिया था कि “ वे हमेशा पांच पुत्रों की माता रहेंगी, उनके सभी पुत्रों में से या तो अर्जुन की मृत्यु होगी या स्वयं कर्ण मारे जाएँगे और वे महारानी कुंती के अन्य चार पुत्रों का वध नहीं करेंगे. ” अपने इस वचन को निभाते हुए उन्होंने युद्ध में अवसर प्राप्त होने पर भी किसी भी पांडू पुत्र का वध नहीं किया और उन्हें भीजीवन दान दिया.

इस प्रकार अपने परम दानी स्वाभाव के कारण उन्हेंदानवीर कर्ण कहा जाता हैं.

कर्ण-अर्जुन का युद्ध (Mahabharat Karna Arjun Yudh)–

कर्ण अर्जुन भाई होते हुए भी बहुत बड़े दुश्मन थे. दोनों के पास बहुत ज्ञान और शिक्षा थी, दोनों अपने आप को एक दुसरे से बेहतर समझते है. लेकिन दोनों में कर्ण ज्यादा बलवान था, ये बात कृष्ण भी जानते थे वे कर्ण को अर्जुन से बेहतर योध्या मानते थे. कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युध्य से हटकर भारतवर्ष का राजा बनने के लिए बोला था, क्यूंकि कर्ण युधिष्ठिर व दुर्योधन दोनों से बड़े थे. लेकिन कर्ण ने कृष्ण की ये बात ठुकरा दी थी. कर्ण ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को महाभारत के चक्रव्यू में फंसा कर मार डाला था, इस बात से कृष्ण व पांडव दोनों बहुत आक्रोशित हुए थे, कर्ण को खुद भी इस बात का बहुत दुःख था क्यूनी वे जानते थे कि अभिमन्यु उनके ही भाई का बेटा है. जब कर्ण अर्जुन का युद्ध हुआ था तब कृष्ण व इंद्र दोनों ने अर्जुन की मदद की थी. युद्ध के समय कर्ण परशुराम द्वारा दी गई महान विद्या को याद करते है लेकिन परशुराम के श्राप के चलते ही वो सब भूल जाते है. युध्य के दौरान कर्ण का रथ मिटटी में धंस जाता है जिसे निकलने वे अपना धनुष नीचे रख देते है. ये सब कृष्ण की चाल होती है. इसी बीच अर्जुन उन पर वान चला देता है. अर्जुन अपने बेटे अभिमन्यु की मौत का बदला कर्ण से लेते है.

धर्मवीर कर्ण (Mahabharat Dharamveer Karna Story) –

कुरुछेत्र का युध्य शुरू होने से पहले कृष्ण कर्ण को बताते है कि वो पांडव से भी बड़ा है, जिससे वो राज्य का सही उत्तराधिकारी है, युधिष्ठिर नहीं. कृष्ण बताते है कि वो कुंती और सूर्य का पुत्र है. कृष्ण उन्हें पांडव का साथ देने को बोलते है, लेकिन दुर्योधन से सच्ची दोस्ती व वफ़ादारी के चलते कर्ण इस बात से इंकार कर देते है. कृष्ण के अनुसार पूरी महाभारत में सिर्फ कर्ण ही है, जिन्होंने अंत तक धर्म का साथ नहीं छोड़ा और धर्म के ही रास्ते पर चले. कर्ण का पूरा जीवन त्याग, जलन में ही बीता, गलत रविया होने के कारण कर्ण अर्जुन के हाथों मारा गया. कर्ण को शुरू से ही पता था कि दुर्योधन गलत राह पर चल रहा है, उसे ये भी पता था कि कौरव ये युद्ध हार जायेंगें, लेकिन दुर्योधन को दिए वचन के चलते कि “वो उसका कभी साथ नहीं छोड़ेगा” कर्ण अंत तक दुर्योधन के साथ रहे और उसकी सेना के सेनापति रहे.

कर्ण का वध (Mahabharat Karna Vadh)–

कर्ण अर्जुन के हाथों मारा गया, इस बात का जब पता कुंती को चला तब वे रोते रोते युद्ध स्थल पर चली आई थी. पांडव ये देखकर हैरान थे कि उनकी माँ दुश्मन के मरने पर इतना क्यों विलाप कर रही है. कुंती उन्हें बताती है कि कर्ण उन सब का ज्येष्ठ भाई है, युधिष्ठिर ये बात सुन अपनी माँ पर गलत लांचन लगाने लगता है, उन्हें बहुत बुरा भला बोलता है, तब कृष्ण पांडव को सारी बात समझाते है. अर्जुन को अपने भाड़े भाई को मारने का बहुत दुःख होता है, वे इसका पश्चाताप भी करते है. कहते है कर्ण कृष्ण का ही रूप थे, कृष्ण ने उन्हें इसलिए बनाया था, ताकि दुनिया त्याग बलिदान की सही परिभाषा समझ सके.

शिक्षा :

इस प्रकार कर्ण के जीवन से हमें अदम्य साहस, वीरता, दानशीलता, कर्तव्य, वचन – बद्धतता और सदैव धर्म की राह पर चलने की सीख मिलती हैं.

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मन का सौंर्दय - a lesson of history

🌞मन का सौंर्दय महत्त्वपूर्ण🌞
महाकवि कालीदास से राजा विक्रमादित्य ने एक दिन अपने दरबार में
पूछा, 'क्या कारण है, आपका शरीर मन और बुद्धी के अनुरूप् नहीं है?' इसके उत्तर में कालिदास ने अगले दिन दरबार में सेवक से दो घड़ों में पीने का पानी लाने को कहा। वह जल से भरा एक स्वर्ण निर्मित घड़ा और दूसरा मिट्टी का घड़ा ले आया। अब महाकवि ने राजा से विनयपूर्वक पूछा, 'महाराज!' आप कौनसे घड़े का जल पीना पसंद करेंगे?' विक्रमादित्य ने कहा, 'कवि महोदय, यह भी कोई पूछने की बात है? इस ज्येष्ठ मास की तपन में सबको मिट्टी के घड़े का
ही जल भाता है।' कालिदास मुस्कराकर बोले, 'तब तो महाराज, आपने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयंम ही दे दिया।' राजा समझ गए कि जिस प्रकार जल की शीतलता बर्तन की सुंदरता पर निर्भर नहीं करती, उसी प्रकार मन-बुद्धी का सौंदिर्य तन की सुंदरता से नहीं आँका जाता। यह है मन का सौंर्दय, जो मनुष्य को महान बना देता है और उसका सर्वत्र सम्मान होता है। 🌺🌺🌺🌷🌷🌷🌺🌺


Week special

🕉🕉🕉VratTyohar🕉🕉🕉                   📝अश्विनी शास्त्री
इस सप्ताह के बारे में विशेष : वर्तमान सप्ताह में मार्गशीर्ष का शुक्ल पक्ष चल रहा है जो मंगलवार 13 दिसंबर को समाप्त हो जाएगा और इससे अगले दिन ही यानी बुधवार को 14 दिसम्बर से पौष मास का कृष्ण पक्ष आरंभ हो जाएगा। इसी सप्ताह के पहले दिन ही पंचक भी लग रहे हैं जो आगामी 9 दिसम्बर को खत्म हो जाएंगे। इस सप्ताह चंपा षष्ठी, स्कंद षष्ठी, दुर्गाष्टमी, नंदा नवमी, मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती, अनंग त्रयोदशी और रवि प्रदोष व्रत आदि का आयोजन किया जायेगा।


श्री दुर्गाष्टमी (7 दिसंबर, बुधवार)
हर महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दुर्गाष्टमी व्रत का विधान है। इस दिन मां दुर्गा का विशेष पूजन और अर्चन किया जाता है। पूजा के बाद उन्हें उबले हुए चने और हलवा पूरी का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि मां दुर्गा के पूजन से उपासकों को विशेष शक्ति मिलती है और उनकी समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन छोटी बच्चियों का पूजन कर उन्हें मां के प्रसाद के रूप में हलवा पूरी खिलायी जाती है।
मोक्षदा एकादशी (10 दिसंबर, शनिवार)
प्राचीन भारतीय हिंदू चिंतन परम्परा में एकादशी के व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि जो मोक्ष दिला सकता है उसे मोक्षदा कहा जाता है। उस एकादशी के दिन रखे जाने वाले व्रत से उपासक को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसीलिए उसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस एकादशी के दिन रखा जाने वाला व्रत मनुष्य को सब पापों से मुक्ति दिला देता है।
एक बार राजा युधिष्ठिर ने जब श्रीकृष्ण से इस व्रत के माहात्म्य के बारे में पूछा तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि इस एकादशी का पुण्य प्राणी को नरक से मुक्ति प्रदान करने वाला है। इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करने पर पितरों का नरक से उद्धार हो जाता है। पद्मपुराण में कहा गया है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप आदि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी सभी प्रकार के पातकों का नाश करने वाली है। इस दिन उपवास रखकर श्रीहरिके नाम का संकीर्तन, भक्तिगीत, नृत्य करते हुए रात्रि में जागरण करना चाहिए। प्राचीनकाल में वैखानस नामक राजा ने भी अपने पितरों की मुक्ति के उद्देश्य से इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया था। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से राजा वैखानस के पितरों का नरक से उद्धार हो गया।
गीता जयंती (10 दिसंबर, शनिवार)
मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती भी कहा जाता है। इस दिन धूप, दीप, तिल, तुलसी के फूलों तथा पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक चले महाभारत युद्ध के दौरान पड़ने वाली मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसके बाद से इस दिन को गीता जयंती के नाम से मनाने की परम्परा शुरू हो गई। इसलिए इस दिन श्रीमद्भगवद गीता के सभी 18 अध्यायों का श्रद्धापूर्वक पाठ करना चाहिए। 🌺🌺🌺🌺🌺🌺


पालक का साग - joke

एक आदमी अपने ससुराल गया उसकी सास ने 7 दिन तक पालक का साग खिलाया"" 😒
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फिर 8 वें दिन....!!
सास:- बेटा क्या खावोगे ...? 😔
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आदमी:- खेत दिखा दो खुद चर आऊंगा....!!
😁😁😁😁😁😁😂😂😂